१ --
हर रोज वही सुबह होती , हर रोज वही होती है शाम !
लगता जैसे जिंदगी कर रही बस copy paste का ही काम !!
२ --
नहीं बदलती मेरी हस्ती चाहे रहूँ किन्ही गुलिस्तानों में !
मेरा अक्स तो आज भी भटकता है गाँव के खलिहानों में !!
३ --
हर शाम उसकी याद लाती क्यों है ! ना जाना उस राह जिंदगी बुलाती क्यों है !!
ना है कोई साथ ये जानता हूँ मै ! फिर कोई परछाई नजर आती क्यों है !!
४ --
यदि पुनर जन्म दो इश्वर , तो मानव बन के ही आऊँ !
जो काम अधूरे छोड़ दिए , आकर पूरे कर पाऊँ !!
पहुँची थी कुछ घर तक , वो हंसी जग मे फैलाऊँ !
बस यही आस और विनती है , मानव जन्म पुनः पाऊँ !!
५ --
उसके आगोश मे होता हूँ जब , लगता है पुरी हुई हर मुराद !
साँथ मेरे हो तो ये मांगू दुआ , ख़त्म ना हो आज चन्दा की रात !
देखने को उस के चहरे पे हँसी , करदु कुरबाँ जन्नत की बिसात !
काट दूँ हर फसलाये जिन्दगी , साथ चल वो दे मेरे हाथों मे हाथ !
६ --
यही हाल है क्या तेरा क्या मेरा , के जो मिल सके ना वही हम ने चाहा !
कोई दीवानगी का इसे नाम देता , किसी ने इंसानी फितरत बताया !!
७ --
तेरा होने का अहसास उस दिन हो गया मुझको !
जब आइने मे ख़ुद को मै तू समझ बैठा !!
इन्द्रधनुष
शनिवार, 17 मई 2008
गुरुवार, 15 मई 2008
इन्द्रधनुष २
१--
अकेले रहा हूँ, अकेले रहूंगा , गमे दर्दे दुनिया अकेले सहूंगा !
न लगता है कोई मेरे संग होगा , जिसे मुस्कुराके मै अपना कहूँगा !!
२ --
फिर हमने गुनाह किया , उसने अदालत लगाई है !
हर बार हुआ बाइज्जत बरी , आज फिर एक सुनवाई है !!
३--
गिर के टूट जाएगा फैंका था उसने !
परिंदा मेरा मन बीच मे ही उड़ चला !!
४--
लड़खडाने के लिए कुछ जाम अभी बाकी है !
दिल होना सरेआम अभी बाकी है !!
मिट गया मेरा नाम तेरे नाम के साथ !
होना बस बदनाम अभी बाकी है !!
५--
वो पूछते है की मेरी जान किस मे है बसी !
मै हंस के कहता हूँ यही की आईने से पूछ लो !!
६--
कभी चलता हूँ तेज, कभी ठहर जाता हूँ !
कभी दिन मै रात होती है , कभी रातों दोपहर मनाता हूँ !!
चलते हुए साथ तेरे जिंदगी मै ,
गम मै मुस्कुराता , खुशी मै सिहर जाता हूँ !!
७--
हर शख्स अपने आप मे मशहूल है , ख़ुद हाथ सोना बाकि सब धूल है !!
साथ आ न सके कोई मंजिल तक , फेंकता तय रास्तों मे शूल है !!
अकेले रहा हूँ, अकेले रहूंगा , गमे दर्दे दुनिया अकेले सहूंगा !
न लगता है कोई मेरे संग होगा , जिसे मुस्कुराके मै अपना कहूँगा !!
२ --
फिर हमने गुनाह किया , उसने अदालत लगाई है !
हर बार हुआ बाइज्जत बरी , आज फिर एक सुनवाई है !!
३--
गिर के टूट जाएगा फैंका था उसने !
परिंदा मेरा मन बीच मे ही उड़ चला !!
४--
लड़खडाने के लिए कुछ जाम अभी बाकी है !
दिल होना सरेआम अभी बाकी है !!
मिट गया मेरा नाम तेरे नाम के साथ !
होना बस बदनाम अभी बाकी है !!
५--
वो पूछते है की मेरी जान किस मे है बसी !
मै हंस के कहता हूँ यही की आईने से पूछ लो !!
६--
कभी चलता हूँ तेज, कभी ठहर जाता हूँ !
कभी दिन मै रात होती है , कभी रातों दोपहर मनाता हूँ !!
चलते हुए साथ तेरे जिंदगी मै ,
गम मै मुस्कुराता , खुशी मै सिहर जाता हूँ !!
७--
हर शख्स अपने आप मे मशहूल है , ख़ुद हाथ सोना बाकि सब धूल है !!
साथ आ न सके कोई मंजिल तक , फेंकता तय रास्तों मे शूल है !!
बुधवार, 7 मई 2008
इन्द्रधनुष १
१ --
हर सुबह मेरी मज्जिद मै हो , हर रात हुआ जगराता हो !
हर एक दुपहर गिरजाघर मै , गुरुद्वारे शाम टिका माथा हो !!
२--
मै हर्फंमौल्ला मौजी हूँ ,मै फक्कड़ अख्हड़ जोगी हूँ !
पर सेवा मेरा काम हुआ , मै कर्म पथ का फौजी हूँ !!
मै मौत को जीना सिख्लादु , डर को भी आईना दिख्लादु !
हर हार मेरी जीत बने , जब खुदा कहे मै हौजी हूँ !!
३--
जल जायेगी जब कास्ट संग मेरी ये काया !
घुल जायेगी मिट्टी मेरी रेवा नदी मै !!
फिर भी रहेगी खोजती तुम को यहीं !
हर मोड़ पर हर शख्स मै मेरी आत्मा !!
४--
धुप मे दीया जलने मे क्या रक्खा है !
खुद अपने आप मै जल कर रह जाएगा !!
गर जानना हे तेरे उजाले कि कशिश !
किसी अँधेरे को रोशन कर अमृत !!
५--
उजाले को खाने कि चाहत मे अमृत !
मुह अँधेरे अपना जला बैठे !!
६--
खुद को देख आईने मे वो शरमा गए !
लगता हे मेरे शैर होंठो पे उनके आ गये !!
७--
वो लाये है फिर से शमाँ महफ़िल मे जला के !
बेवजह आज फिर परवानों को जलना होगा !!
हर सुबह मेरी मज्जिद मै हो , हर रात हुआ जगराता हो !
हर एक दुपहर गिरजाघर मै , गुरुद्वारे शाम टिका माथा हो !!
२--
मै हर्फंमौल्ला मौजी हूँ ,मै फक्कड़ अख्हड़ जोगी हूँ !
पर सेवा मेरा काम हुआ , मै कर्म पथ का फौजी हूँ !!
मै मौत को जीना सिख्लादु , डर को भी आईना दिख्लादु !
हर हार मेरी जीत बने , जब खुदा कहे मै हौजी हूँ !!
३--
जल जायेगी जब कास्ट संग मेरी ये काया !
घुल जायेगी मिट्टी मेरी रेवा नदी मै !!
फिर भी रहेगी खोजती तुम को यहीं !
हर मोड़ पर हर शख्स मै मेरी आत्मा !!
४--
धुप मे दीया जलने मे क्या रक्खा है !
खुद अपने आप मै जल कर रह जाएगा !!
गर जानना हे तेरे उजाले कि कशिश !
किसी अँधेरे को रोशन कर अमृत !!
५--
उजाले को खाने कि चाहत मे अमृत !
मुह अँधेरे अपना जला बैठे !!
६--
खुद को देख आईने मे वो शरमा गए !
लगता हे मेरे शैर होंठो पे उनके आ गये !!
७--
वो लाये है फिर से शमाँ महफ़िल मे जला के !
बेवजह आज फिर परवानों को जलना होगा !!
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