बुधवार, 7 मई 2008

इन्द्रधनुष १

१ --
हर सुबह मेरी मज्जिद मै हो , हर रात हुआ जगराता हो !
हर एक दुपहर गिरजाघर मै , गुरुद्वारे शाम टिका माथा हो !!

२--
मै हर्फंमौल्ला मौजी हूँ ,मै फक्कड़ अख्हड़ जोगी हूँ !
पर सेवा मेरा काम हुआ , मै कर्म पथ का फौजी हूँ !!
मै मौत को जीना सिख्लादु , डर को भी आईना दिख्लादु !
हर हार मेरी जीत बने , जब खुदा कहे मै हौजी हूँ !!

३--
जल जायेगी जब कास्ट संग मेरी ये काया !
घुल जायेगी मिट्टी मेरी रेवा नदी मै !!
फिर भी रहेगी खोजती तुम को यहीं !
हर मोड़ पर हर शख्स मै मेरी आत्मा !!

४--
धुप मे दीया जलने मे क्या रक्खा है !
खुद अपने आप मै जल कर रह जाएगा !!
गर जानना हे तेरे उजाले कि कशिश !
किसी अँधेरे को रोशन कर अमृत !!

५--
उजाले को खाने कि चाहत मे अमृत !
मुह अँधेरे अपना जला बैठे !!

६--
खुद को देख आईने मे वो शरमा गए !
लगता हे मेरे शैर होंठो पे उनके आ गये !!

७--
वो लाये है फिर से शमाँ महफ़िल मे जला के !
बेवजह आज फिर परवानों को जलना होगा !!

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