शनिवार, 17 मई 2008

इन्द्रधनुष ३

१ --
हर रोज वही सुबह होती , हर रोज वही होती है शाम !
लगता जैसे जिंदगी कर रही बस copy paste का ही काम !!

२ --
नहीं बदलती मेरी हस्ती चाहे रहूँ किन्ही गुलिस्तानों में !
मेरा अक्स तो आज भी भटकता है गाँव के खलिहानों में !!

३ --
हर शाम उसकी याद लाती क्यों है ! ना जाना उस राह जिंदगी बुलाती क्यों है !!
ना है कोई साथ ये जानता हूँ मै ! फिर कोई परछाई नजर आती क्यों है !!

४ --
यदि पुनर जन्म दो इश्वर , तो मानव बन के ही आऊँ !
जो काम अधूरे छोड़ दिए , आकर पूरे कर पाऊँ !!
पहुँची थी कुछ घर तक , वो हंसी जग मे फैलाऊँ !
बस यही आस और विनती है , मानव जन्म पुनः पाऊँ !!

५ --
उसके आगोश मे होता हूँ जब , लगता है पुरी हुई हर मुराद !
साँथ मेरे हो तो ये मांगू दुआ , ख़त्म ना हो आज चन्दा की रात !
देखने को उस के चहरे पे हँसी , करदु कुरबाँ जन्नत की बिसात !
काट दूँ हर फसलाये जिन्दगी , साथ चल वो दे मेरे हाथों मे हाथ !

६ --
यही हाल है क्या तेरा क्या मेरा , के जो मिल सके ना वही हम ने चाहा !
कोई दीवानगी का इसे नाम देता , किसी ने इंसानी फितरत बताया !!

७ --
तेरा होने का अहसास उस दिन हो गया मुझको !
जब आइने मे ख़ुद को मै तू समझ बैठा !!